लोगों की राय

विविध धर्म गुरु >> श्री दसम ग्रन्थ साहिब 4

श्री दसम ग्रन्थ साहिब 4

जोधसिंह

प्रकाशक : भुवन वाणी ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :726
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :81-7951-008-5

Like this Hindi book 15 पाठकों को प्रिय

385 पाठक हैं

इस ग्रन्थ में अन्यायी का अन्याय, अत्याचार पर अत्याचार, किन्तु उतने पर भी, सदैव धर्म और विजय और अधर्म के नाश पर आधारित पुस्तक है...

Shri Dasam Granth Sahib-4-A Hindi Book by Jodhsingh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रकाशकीय प्रस्तावना


विषय-प्रवेश

दशम ग्रंथ की चौथी सैंची भी भगवत्कृपा से  प्रकाशित हो गई। एक अलौकिक ग्रंथ सम्पूर्ण हुआ। ग्रन्थ के विषय में पिछली तीन सैंचियों में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। वर्ष ग्रन्थों पर अकिञ्चन जैसे की अधिक लिखने की सामर्थ्य ही क्या ?

प्रस्तुत सैंची में एक प्रमुख अंश ‘ज़फरनामा’ है। यह फारसी-प्रधान भाषा में एक पत्र है, जो दशमेश श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने मुगल शाहंशाह औरंजेब को  लिखा था। इस पत्र में अन्यायी का अन्याय, अत्याचार पर अत्याचार, किन्तु उतने पर भी, सदैव धर्म की विजय और अर्धम का नाश ही होता रहा है- ऐसा वर्णन हैं। ऐसा  प्रतीत होता है

कि ज़फ़रनामा का एक-एक शब्द शर-स्वरूप होकर दशमेश के को दण्ड से निकलकर सीधे शाह के वक्षस्थल पर लग रहा है।
और हुआ भी वही। गुरु तो परमधाम को सिधारे, परन्तु शाह की सल्तनत भी अधिक चल न सकी। वह यमधाम के हवाले हुई।


एक अनोखा वैचित्र्य


भुवन वाणी ट्रस्ट ने अनेक देशी-विदेशी भाषाओं के श्रेष्ठ ग्रन्थ को नागरी लिपि में लिप्यन्तरित कर हिन्दी अनुवाद-सहित प्रकाशित किया- अब तक लगभग 55 ग्रन्थ सानुवाद लिप्यन्तरण का उद्देश्य और उसका जीता-जागता प्रत्यक्ष सुबूत, जैसा दशम ग्रंथ के प्रकाशन में प्राप्त हुआ वैसा दुर्लभ है।
वैचित्र्य यह है कि दशम ग्रंथ की लिपि तो पंजाबी (गुरमुखी) है, किन्तु उसकी भाषा ठेठ ब्रजभाषा हिन्दी है। परिणाम यह पंजाबी लिपि में ही अब तक प्रकाशित होने के कारण, पंजाबी पाठक, अपवादों को छोड़कर, इस ग्रन्थ को पढ़ते समय उसका आशय नहीं समझ पाता था, क्योंकि वह ब्रजभाषा से अनभिज्ञ रहा।


उसी भाँति हिन्दी पाठक, जो ब्रजभाषा बखूबी समझ सकता है, पंजाबी लिपि न पढ़ पाने के स्वरूप, इस अनुपम ग्रन्थ से अनभिज्ञ रहा। हिन्दी भाषी और पंजाबी दोनों ही प्रायः इस रहस्य को समझ ही न पाये। केवल ग्रन्थ और दशमेश के प्रति श्रद्धावनत होकर ही संतोष पाते रहे। आज लिपि का आवरण हटते ही यह रहस्य खुल गया। सारा राष्ट्र उत्सर्गमय समस्त जीवन बिताने वाले दशमेश की वाणी का साक्षात् कर सका।

अनावश्यक संशय

दो पंक्तियां लिखना आवश्यक है। प्रायः लोग ग्रन्थ के  किन्हीं अंशों के प्रक्षिप्त होने का सन्देह करते हैं। कोई-कोई दशमेश के दार्शनिक विचारों को स्थापित करने में लगते हैं। इनमें कई पक्ष हैं। मेरा उन सबसे नम्र निवेदन है कि परमपवित्र आत्मा को इस दलदल में न घसीटें। धर्मिक विवेचनों, उनकी छानबीन, मान्य-सामान्य का निर्णय- इसका उनको जीवन में अवसर ही कब मिला ?

पिता शहीद हुए। चारों बच्चें शहीद हुए। सारा जीवन उनका उत्सर्ग, बलिदान और जूझने में बीता, और अन्ततः विलय को प्राप्त हो गये। उन्होंने एक मात्र भारतीय संस्कृति का रक्षा और आततायी के संहार में सारा समय लगाया। उनका ग्रंथ ‘‘नेति-नेति’’ से आरम्भ होता है, और सभी को बिना भेदभाव के धर्मोंन्मुख करता है। धरातल की सभी जमातों में यह निर्विवाद वचन है कि इल्म (ज्ञान) बिना गुरु के प्राप्त नहीं होता। अतः मैं अतीव श्रद्धा और समर्पित भाव से दशमेश के आगे नत होता हुआ इस ध्यान को दुहराता हूँ:-


 
‘गुरुर्ब्रह्मागुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरये नमः।।’

कामना

हे भगवान् !
 
‘नत्वहं कामये राज्यं, नस्वर्गं, नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ।।’
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वें सन्तु निरामयाः।’

आभार प्रदर्शन

सर्वप्रथम हम सरदार डा. जोधसिंह जी के कृतज्ञ है, जिन्होंने निस्पृह भाव से ट्रस्ट के आग्रह पर अनुवाद जैसे जटिल और गहन कार्य को राष्ट्रहित में अति श्रम एवं तत्परता से किया। सर्वाधिक श्रेय उनको है।

विदित हो

विदित हो कि पुत्र-जन्म पर उसका नाम लखपित साह रख देने से वह लखपति नहीं बन सकता, वह दस-बीस लाख का स्वामित्व पाकर ही लक्षाधीश चरितार्थ होगा। राष्ट्रभाषा की स्थापना तो हो गई परन्तु अभी वह इस रूप में रचितार्थ तो नहीं हुई। भारत में अधिक फैली होने के एक मात्र कारण से, प्रचलित हिन्दी (खड़ी बोली) को राष्ट्रभाषा और परम वैज्ञानिक भारतीय लिपियों में से सर्वाधिक प्रसारित लिपि ‘नाहरी’ को उनकी प्रतिनिधि स्वरूपा होकर राष्ट्र का एकात्मभाव सदैव की भाँति दृढ़ बनाये रखने के लिए सेवा सौपी गई। अतः प्रथम कर्तव्य है राष्ट्रलिपि और राष्ट्रभाषा को न केवल भारतीय वरन् विश्व के वाङ्मय के सानुवाद लिप्यन्तरण द्वारा भर दिया जाए।


 लखपति साह को वस्तुतः लक्षाधीश बना दिया जाय।
विश्ववाङ्मय से निःसृत अगणित भाषाई धारा।
पहन नागरी पट सबने अब भूतल-भ्रमण विचारा।।
अमर भारती सलिला की ’गुरमुखी’ सुपावन धारा।
पहन नागरी पट, ‘सुदेवि’ ने भूतल-भ्रमण विचारा।।

नन्दकुमार अवस्थी (पद्मश्री)

मुख्यन्यासी सभापति,

नोटः- प्रस्तुत संस्करण कम्प्यूटर पर संशोधित एवं परिवर्धित रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रतिष्ठाता पं, नन्द कुमार अवस्थी द्वारा लिखित प्रकाशकीय प्रस्तावना में भी वर्तमान समय के अनुसार आवश्यक संशोधन किया गया है। क्षमायाचना के साथ-

विनय कुमार अवस्थी

अनुवादकीय


प्रस्तुत चतुर्य सैंची में मूलग्रंथ के एक सौ अट्ठाईस चरित्रोपाख्यानों के बाद के सम्पूर्ण उपाख्यान और ज़फ़रनामा आदि रचनाओं का अनुवाद प्रस्तुत है। चरित्रोपाख्यानों में हम स्पष्टतः पाते है। इनके माध्यम से कामोन्माद एवं उससे प्रसूत अल्पदृष्टि, प्रवंचना और धूर्तताओं को प्रदर्शित करते हुए मानव मात्र को स्थान-स्थान पर चेतावनियाँ दी गई हैं। चरित्रोपाख्यान जीवन के विभिन्न आयामों को प्रतिबिंबित करने वाले दुःसाहसिक एवं दुष्वृत्ति वाले चरित्रों और कामासक्ति के निर्बुद्धिपूर्ण क्षणों के प्रति सावधान करने वाली कृति है, जिसे शुद्ध उपयोगितावाद को दृष्टि में रखकर लिखा गया है।

ज़फ़रनामा मूल रूप में फ़ारसी में लिखा गुरु गोबिंद सिंह का वह पत्र है जो उन्होंने आनन्दपुर छोड़ने के बाद सन् 1706 में औरंगजेब को लिखा था। यह पत्र भाई दयासिंह और भाई धर्मसिंह के हाथों औरंगजेब को अहमदनगर (दक्षिण) में भिजवाया गया था, जिसे पढ़कर बादशाह अत्यन्त प्रभावित हुआ था। अत्यन्त विकट परिस्थितियों में लिखा गया यह पत्र स्पष्ट रूप से सिद्ध करता है कि चारों पुत्रों, माता, हजारों सिक्ख सैनिकों के मारे जाने के बावजूद गुरु गोविन्द सिंह अपने उद्देश्यों के प्रति तनिक भी हतोत्साहित नहीं हुए थे। ज़फ़रनामा के लेखक का स्वर एक विजेता का स्वर है, जिसमें किसी प्रकार के विषाद एवं कुंठा की झलक दिखाई नहीं पड़ती। अत्यन्त ओजस्वी भाषा में गुरु गोविन्द सिंह सम्राट औरंगज़ेब की तमाम अच्छाइयों को दिखाते हुए भी डटकर लिखते हैं कि तुम धर्म से कोसों दूर हो।’’

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai